इतने बेताब, इतने बेक़रार क्यूँ हैं,
इतने बेताब, इतने बेक़रार क्यूँ हैं,
लोग जरुरत से ज्यादा, होशियार क्यूँ हैं।
मुंह पे तो सभी, दोस्त हैं लेकिन,
पीठ पीछे दुश्मन हजार क्युँ हैं।
हर चहरे पर इक मुखौटा हैं यारो,
लोग ज़हर में डूबे किरदार क्यूँ हैं।
सब काट रहे हैं यहाँ इक दूजे को,
लोग सभी दो धारी तलवार क्यूँ हैं।
न जाने किस हुनर को,
लोग शायरी कहते है.
हम तो वह लिखते है,
जो तुमसे कह नहीं सकते।
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